Ek kavita jo apka dil chu le - मैं प्रेम में, बुद्ध नहीं होना चाहता, deepthoughts

मैं प्रेम में,
बुद्ध नहीं होना चाहता,
मुझे एक बार
पुराना सिद्धार्थ होना है।

मैं नहीं चाहता,
शयनकाल में पलायन,
और जगत का उद्धार।

मुझे रहना हैं संग तुम्हारे,
इस निज जीवन में,
उसी तरह जैसे
यशोधरा तुमने, अपनी
विदाई के वक़्त सोचा होगा।

मुझे निर्वाण के
गुणधर्म की खोज में,
कोई दिलचस्पी नहीं रही।

इस बार तो बस मरना हैं
इसी सांसारिकता के मोह में,
तुम्हारे संग चलकर।

मैं प्रेम को
आध्यात्म से
अलग करके
तुम्हें विदा
नहीं करना चाहता।

मैं प्रेम को
आध्यात्म बनाकर,
पा लेना
चाहता हूँ ख़ुद को
तुम्हारी आत्मा में।

और रात्रिकाल की अपेक्षा,
निकलना चाहूँगा दिन दहाड़े
नगर नगर, गली-गली,
तुम्हे साथ लिए,
प्रेम, आध्यात्म और जीवन का
एक ही स्वरूप संग लिए,

ताकि फिर कभी कोई बुद्ध
सत्य की खोज में,
यशोधरा को अकेला छोड़ कर न जाएँ।
गौरव 

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