अजीब ही तो होती है हम औरतें--
तभी तो आज तक औरत का दर्द,
कोई समझ नही सका
वो किस वक़्त क्या चाहती है ये कोई न जान सका-
तभी तो औरतें अजीब होती है------!
तभी तो आज तक औरत का दर्द,
कोई समझ नही सका
वो किस वक़्त क्या चाहती है ये कोई न जान सका-
तभी तो औरतें अजीब होती है------!
एक नही दस दुकानें देखती है
जहाँ सस्ता मिले वही से खरिदारी करती है
कुछ बचत कर पाये यही सोच रखती है
तभी तो औरतें अजीब होती है------!!
जहाँ सस्ता मिले वही से खरिदारी करती है
कुछ बचत कर पाये यही सोच रखती है
तभी तो औरतें अजीब होती है------!!
कोई जज़्बा दिल का गुम हो जाये ,
तो तड़प जाती है
ज़ुल्म सहकर भी अपनो की बातें सर झुका कर सुनती है
तभी तो औरतें अजीब होती है---
तो तड़प जाती है
ज़ुल्म सहकर भी अपनो की बातें सर झुका कर सुनती है
तभी तो औरतें अजीब होती है---
अपने दिल का दर्द किसको सुनाये,
एक काम के साथ दस काम निबटाती हैं
तभी तो औरतें अजीब होती हैं
एक काम के साथ दस काम निबटाती हैं
तभी तो औरतें अजीब होती हैं
जिसको चाहती हैं बेपनाह चाहती हैं
वो जब नज़र न आये तो,
चुपके कुपके आँसूँ बहाती हैं
तभी तो औरतें अजीब होती हैं
वो जब नज़र न आये तो,
चुपके कुपके आँसूँ बहाती हैं
तभी तो औरतें अजीब होती हैं
जल्दी जल्दी साड़ी लपेटती हैं
आटा नाखूनो मे लगा रह जाता है
किसी की नज़र पड़े तो बारीकी से छुपाती है
तभी तो औरतें अजीब होती हैं-
आटा नाखूनो मे लगा रह जाता है
किसी की नज़र पड़े तो बारीकी से छुपाती है
तभी तो औरतें अजीब होती हैं-
रातें करवटों मे बदलती है
बेचैंन अपनेपन को रहती है
किसी के दो मीठे बोल शहद लगते है
अजनबी के साथ रहकर भी खुद को संम्भालती है
तभी तो औरतें अजीब होती हैं-
बेचैंन अपनेपन को रहती है
किसी के दो मीठे बोल शहद लगते है
अजनबी के साथ रहकर भी खुद को संम्भालती है
तभी तो औरतें अजीब होती हैं-
तकलीफ होने पर नम आँखें किसी को न दिख जाये
वाॅशरूम मे जाकर रोती हैं
नल के पानी की आवाज़ मे अपनी सिसकी छुपाती हैं
तभी तो औरतें अजीब होती हैं-
वाॅशरूम मे जाकर रोती हैं
नल के पानी की आवाज़ मे अपनी सिसकी छुपाती हैं
तभी तो औरतें अजीब होती हैं-
सूरज के साथ जागती हैं
अपने घर को संवारती है
दिन भर घर ओ बाहर की
ज़िम्दारियाँ सभी तो निभाती है
देर रात तक जागती है,
सोने के पहले घर के हर कोने को टटोलती है
अपने घर को संवारती है
दिन भर घर ओ बाहर की
ज़िम्दारियाँ सभी तो निभाती है
देर रात तक जागती है,
सोने के पहले घर के हर कोने को टटोलती है
जब थक कर चूर हो जाती है
उस पल उनके पास कोई नही होता,
उनका हाथ थामनेवाला ,दुलार से बाल सहलाकर ये कहनेवाला---"आज बहोत थक गयी हो तुम"क़रीब आ जाओ,मेरी बाहें मे समा जाओ,
सब अपने अपने मे मसरूफ रहते है,
औरत के दिल की थकान को,
पूछने को यहाँ कोई नही होता है,
कोई काम ठीक से न हो अगर तो
ठोकने के लिये हरदम तैयार रहते है
सब सहती जाती है,
तभी तो औरतें अजीब होती है-
उस पल उनके पास कोई नही होता,
उनका हाथ थामनेवाला ,दुलार से बाल सहलाकर ये कहनेवाला---"आज बहोत थक गयी हो तुम"क़रीब आ जाओ,मेरी बाहें मे समा जाओ,
सब अपने अपने मे मसरूफ रहते है,
औरत के दिल की थकान को,
पूछने को यहाँ कोई नही होता है,
कोई काम ठीक से न हो अगर तो
ठोकने के लिये हरदम तैयार रहते है
सब सहती जाती है,
तभी तो औरतें अजीब होती है-
वो अपनी न पूरी होने वाली,
ख़्वाहिशत के साथ आँखे मूंद लेती है
थकी हुई औरते तब सो जाती हैं-
तभी तो औरतें अजीब होती हैं
ख़्वाहिशत के साथ आँखे मूंद लेती है
थकी हुई औरते तब सो जाती हैं-
तभी तो औरतें अजीब होती हैं
अपने अरमानो को कुचलकर
दूसरो के सपने पूरे करती हैं
एक चाह बस आज़ादी की साँस मिले ये रखती हैं
मगर वो भी तो दूभर उनके लिये होती है
चाहकर भी जो न उड़ान भर सके
अपने सपनो को न जी सकें
अपने सपनो की क़ुर्बानी देती है
तभी तो औरतें अजीब होती हैं---!!
दूसरो के सपने पूरे करती हैं
एक चाह बस आज़ादी की साँस मिले ये रखती हैं
मगर वो भी तो दूभर उनके लिये होती है
चाहकर भी जो न उड़ान भर सके
अपने सपनो को न जी सकें
अपने सपनो की क़ुर्बानी देती है
तभी तो औरतें अजीब होती हैं---!!
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